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Thursday, September 27, 2018

NIOS Class 12th Hindi Notes

NIOS Class 12th Hindi Notes 

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NIOS Class 12th Hindi Notes For October Exam

प्र०1- कविता के प्रमुख अवयव कौन-से हैं?
उ०- (1) भाव पक्ष, (2) कला पक्ष।

प्र०2- प्रतीक और बिंब किसे कहते हैं?
उ०- आज के नवीन युग में प्रतीक और बिंब को कविता का आवश्यक व कौशल तत्व माना जाने लगा है। ये दोनों तत्व कविता की रचना में सहयोग प्रदान करते हैं।

प्र०3- छंद का क्या अर्थ है?
उ०- छंद का अर्थ है-भाषा के लयात्मक रूप को एक निश्चित ढाँचे में बाँधकर रखना; जैसे दोहा, चौपाई, सोरठा, सवैया आदि छंदों के भेद हैं।

प्र०4- रस किसे कहते हैं?
उ०- रस कविता के वे तत्व कहे जाते हैं, जो पाठक के अंदर सोये हुए स्थायी भावों को जगाकर कथ्य को ग्रहण कराने में सहायता पहुँचाते हैं तथा पाठक को भी कवि की मन: स्थिति तक पहुँचाने की कोशिश करते हैं।

प्र०5- अपने प्रति राम का प्रेम भाव प्रकट करते हुए भरत क्या कहते हैं?
उ०- भरत कहते हैं कि मेरे स्वामी राम किसी अपराधी पर कभी क्रोध नहीं करते। मुझ पर तो उनकी विशेष कृपा और स्नेह है। मैंने खेल में भी कभी उनकी अप्रसन्नता नहीं देखी। बचपन में भी उन्होंने कभी मेरा दिल नहीं तोड़ा। मेरे हारने पर भी प्रभु ने मुझे ही जिताया है। मैंने भी प्रेम और संकोचवश कभी उनके सामने मुँह नहीं खोला। प्रेम के प्याले मेरे नेत्र आज तक प्रभू राम के दर्शन से तृप्त नहीं हुए।

प्र०6- तुलसी की काव्य शौली की दो विशेषताएँ सोदाहरण समझाइए?
उ०- तुलसी की काव्य शौली की अनेक विशेषताएँ हैं, परंतु उनमें से दो मुख्य हैं-
(1) उन्होंने अपनी काव्य रचना में अवधी भाषा का प्रयोग किया, परन्तु उन्होंने ब्रज भाषा का प्रयोग भी किया।
(2) तुलसीदास ने अपनी काव्य शैली में पद, कवित्त, सवैया, दौहा, चौपाई आदि का वर्णन किया।

प्र०7- तुलसीदास के शिल्प सौंदर्य का वर्णन कीजिए?
उ०- भाव और शिल्प क्षेत्रों में वे बेजोड़ हैं। तुलसी की कविता में भाव वर्णन के साथ-साथ अलंकार स्वाभाविक रूप से पिरोए गए हैं, थोपे नहीं गए। कदम-कदम पर तुलसी अनुप्रास के प्रयोग में सिद्धहस्त हैं; विशेष रूप से छेकानुप्रास। तुलसी की कविता में नादात्मकता भी पाई गई हैं। उनकी कविता के अर्थ में गांभीर्य है। तुलसी द्वारा रचित मानस की भाषा अवधी है, उनकी अवधी बहुत मधुर प्राजंल शब्दावली से युक्त है। दोहा और चौपाई तुलसी के प्रिय छंद हैं।

प्र०8- मात्रिक समछंद किसे कहते हैं?
उ०- चौपार एक प्रकार का मात्रिक छंद हैं। इसमें दो चरण होते हैं। दोनों चरणों की मात्राएँ बराबर (16-16) होती हैं। इसे मात्रिक समछंद कहते हैं।

प्र०9- टूटे सुजन मनाइए जो टूटे सौ बार।
         रहिमन फिरि-फिरि पोहिए, टूट मुक्ताहार।।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में रहीम ने सज्जनों के रूठ जाने पर उन्हें मनाने की बात कही है।
व्याख्या- रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार मोतियों के हार के टूट जाने पर मोतियों को फेका नहीं जाता, बल्कि उन्हें पिरोकर फिर से हार बना दिया जाता है; उसी प्रकार उत्तम लोगों तथा अपने परिवार जनों के रूठने या नाराज होने पर उन्हें हर बार मना लेना चाहिए।
भावार्थ- सबसे प्रेम बनाकर रखना चाहिए।
शब्दार्थ-सुजन-अच्छे लोग, पोहिए-पिराते हैं,मुक्ता हार- मोतियों का हार।

प्र०10- वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। 
            बाँटनवारे के लगै, ज्यों मेंहदीं को रंग।।
उ०- प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में मनुष्य के परोपकार स्वभाव की विशेषता बताई गई हैं।
व्याख्या- वे मनुष्य प्रशंंसा के पत्र हैंं, जो दूसरों का भला करते हैं। मेहदी बांटने वाले के हाथ में मेहदी का लगाना स्वभाविक हैै। इसी तरह दूसरों का उपकार करने वाले का भला स्वयं हो जाता है।
भावार्थ- मनुष्य में परोपकार की भावना होनी चाहिए।

प्र०11-रहिमन मोहिं न सुहाय, अमी पियाव मान बिनु।
 बरू विष देय बुलाय,मान सहित मरिबो भलो।।
उ०- प्रसंग-इस सोरठा में मनुष्य के आत्मसम्मान की महिमा का गुणगान किया गया है।
व्याख्या- रहीम कहते हैं कि यदि कोई मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाकर अमृृत पिलााए, तो वह मुझे स्वीकार नहीं हैै, जबकि प्रेम और सम्मान के साथ कोई जहर भी प्रस्तुत करें तो मुझे स्वीकार है, उसे पीकर मर जाना मुझे उत्तम लगेगा। यदि किसी का आत्मसम्मान नहीं छीन जाए, तो वह जीकर क्या करेगा।
भावार्थ- जीवन में प्रेम से ज्यादा पानी के अलावा कुछ भी नहीं हैै।

प्र०12- रहीम की निजी विशेषताओं के बारे में बताइए?
उ०- रहीम को लोक-संस्कृति, लोक व्यवहार तथा शास्त्रों का गहरा ज्ञान था। उन्होंने इस ज्ञान को सामान्य भाषा में बड़ी साजिदा के साथ अपनी कविता में व्यक्त किया है वे साधारण मनुष्य के दैनिक जीवन से उदाहरण लेकर नीति की गूढ बातों को आसानी से समझा देते हैं। सूक्ष्म अवलोकन, शास्त्र ज्ञान और सहज अभिव्यक्ति उनकी निजी विशेषता है।

प्र०13- रहीम ने प्यादे और फरजी का दृष्टांत क्यों दिया है?
उ०- क्योंकि मनुष्य को ऊँचा पद मिलने पर उसमें अभिमान आ जाता है; इसलिए रहीम ने प्यादे और फरजी़ का दृष्टांत दिया है।

प्र०14- यमक और श्लेष अलंकार में अंतर स्पष्ट कीजिए तथा प्रत्येक का एक-एक उदाहरण भी दीजिए?
उ०- जब दो शब्द साथ आने पर दोनों शब्द अलग-अलग अर्थ प्रस्तुत करें, तो यमक अलंकार होता है। जैसे 'हीरे नीके नैना नुतों ', 'हरि नीके एक नैने' और श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के दो अर्थ होते हैं। जैसे- 'बारे उजियारो लगै, बढै अँधेरो होय' में बारे ताथ बढै शब्द का एक-एक बार ही प्रयोग हुआ है; पर ये 'दीपक' और 'कपूत' के लिए भिन्न भिन्न अर्थ देते हैं। अत: इन दोनों शब्दों में एक से अधिक अर्थ देने के कारण श्लेष अलंकार है।

प्र०15- गदय की प्रमुख विधाओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए?
उ०- गदय की प्रमुख विधाएँ कथा साहित्य के अन्तर्गत कहानी, लघुकथाएँ तथा उपन्यास कहे गये हैं। नाटक के अन्तर्गत एकांकी नुक्कड़ व मंचीय नाटक अाते हैं निबंध के अंतर्गत विचारात्मक चिंतन प्रधान ललित निबंध और हास्य व्यंग्य आदि आते हैं। नवीन विधाओं के अन्तर्गत यात्रा-वृतांत, संस्मरण, रेखाचित्र, साक्षात्कार  आत्मकथा, पत्र व जीवनी आती है।

प्र०16- निम्नलिखित गद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) जीवन में वेह हैं, जीवन में आत्मा है। देह नाशशील और आत्मा शश्वत। तो अात्मा को हिलना झुकना नहीं हैं और देह को निरंतर हिलना झुकना ही है। नहीं तो हम हो दाएँगे रामलील के रावण की तरह जो बाँस की खपच्चियों पर खड़ा रहता है न हिलता है न झुकता है। हमारे विचार लचीले हों, परिस्थितिथों के साथ वे समन्वय साधते चलें, पर हमारे आदर्श स्थिर हों।
प्रसंग- इस गंघाश में लेखक ने पेड़ और ठूँठ के माध्यम से मानव-जीवन पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या- लेखक कहता है कि मानव शरीर में आत्मा विद्यमान हैै। आत्मा तन में स्थित है, परंतु शरीर हिलता-जुलता रहता है। यदि शरीर झुकता नहीं, तो दशहरे के रावण की तरह बाँस की खपच्चियों पर अकड़कर खड़ा रहता है। मनुष्य को परिस्थितियों से समझौता करने वाला होना चाहिए।
(ख) दो टूक बात यों कि जीवन वह हैं, जो समय  पर हिल भी सकता है और समय पर झुक भी, पर ठूँठ वह है जो अड़ ही, झुक नहीं सकता।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने जीवन और जड़ता के सम्बन्ध के बारे में बताया है।
व्याख्या- मनुष्य का परिस्थितियों के साथ समझौता करना बुद्धिमतापूर्ण कार्य है, वह तभी कामयाब है। परन्तु जो ठूँँठ की तरह केवल जड़ ही होता है, जो न तो झुक सकता है और न हिल-जुल सकता हैैै। वह मृृृृतक के समान है।
(ग) एक है जीवंत दृढता और दूसरा निर्जीव जड़ता। हम दृढ़ हों, जड़ नहीं। 
प्रसंग- कवि ने मनुुुष्य को संंदेश दिया है कि वह जीवन में स्थिर रहे, परन्तु जड़ नहीं।
व्याख्या- लेखक मनुष्य से कहता हैं कि जीवन में मनुष्य को अडिग होना चाहिए; परन्तु जड़ नहीं होना चाहिए, क्योंकि जुड़े होने पर जीवन जिया नहीं जाता।

प्र०17- प्रस्तुत कहानी का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उ०- कहानीकार ने सभी घटनाओं के माध्यम समाज-सेवा को सहज रूप से उत्तम सिध्द करना चाहा तथा बताया कि मानवीय संवेदनाओं से भरा व्यक्ति ही सच्चा कलाकार हो सकता है। इस कथा में सहज रूप से आई घटनाओं, चरित्रों तथा संवादों के माध्यम से अपने उद्देश्य प्राप्त करने में सफलता पाई है। घटनाओं के अलावा संवादों के माध्यम से भी उद्देश्य को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। दूसरों की पीड़ा से अनुप्रेरित होने के कारण समाज-सेवा, चित्रकला से अधिक उपयोगी है। इस उद्देशय की पूर्ति के लिए कहानीकार ने ऐसी स्थितियों और घटनाओं का चयन किया है, जिसमें दोनों ही पक्ष हिस्सा लेते हैं और अपने-अपने कार्यो की उत्तमता का दावा करते हैं।

प्र०18- चित्रा किस बात के लिए लोकप्रिय है?
कला में लगन के साथ-साथ चित्र विनोदी स्वभाव की छात्रा है, इसलिए अपने हॉस्टल में वह इतनी लोकप्रिस है कि हॉस्टल में उसकी विदाई समारोह का आयोजन किया जाता है और गुरुजी के पास से लौटने में देरी होने पर सभी छात्राओं को उसकी चिंता रहती है।

प्र०19- इस कहानी के प्रारंभ, विकास और अंत के सम्बंन्ध में अपने विचार-व्यक्त कीजिए?
उ०- मन्नू भंडारी द्वारा रचित कहानी 'दो कलाकार' इसमें चित्रा व अरुणा दोनों सहेलियाँ हॉस्टल में रहती हैं। चित्र सोई हुई अरुणा को उठाकर अपना चित्र दिखाती है।अरुणा उदास थी; क्योंकि फुलिया दाई का बच्चा मर गया था। चित्रा होस्टल में जाकर तीन चित्र बनाती है तथा अरुणा बाढ़-पीडीतों कि मदद करती है। गर्ग स्टोर के पास एक भीख माँगने वाली स्त्री अपने दोनों बच्चों को छोड़कर मर जाती है। चित्रा उसे भिखारिन का चित्र बनाती है और अरुणा उसके दोनों बच्चों को देखभाल व पालन-पोषण के लिए अपने पास रखती है। दिल्ली में लगी चित्र प्रदर्शनी में दोनों सहेलियों की मुलाकात होती है, तो चित्रा अरुणा को उस भिखारिन का चित्र दिखाती है, जिससे उसे विदेश में पुरस्कार मिला है। अरुणा अपने साथ दोनों बच्चों को चित्रा से बिल्व आती है और बताती है कि वे दोनों बच्चे उस भिखारिन के हैं। चित्रा अपने आपको अरुणा के समक्ष छोटा महसूस करती है। इस प्रकार यह पता चलता है कि चित्रा अपनी कला को समर्पित है तथा अरुणा सामाजिक सेवा से दूसरों का मन जीत लेती है।

प्र०20- भाषा को किस प्रकार अभिव्यक्त किया जाता है?
उ०- प्रतिदिन जीवन में सुख या दु:ख की जो अनुभूति होती है वह अनायास ही व्यक्त हो जाती है। बीमारी के समय हमारे मुँह से 'हे राम!' दुख की अवस्था में कई बार ओ माँ! निकल पड़ता है। इस तरह के अनेक ध्वनि-संकेतों की सहायता से हम अपने विचारों को दूसरों के सामने व्यक्त करने के लिए भाषा का सहारा लेते हैं इस मौखिक अभिव्यक्ति कहते हैं।

1 comment:

Yes how can i help you

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